ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरा नंद की अभिनव पहल, चमोली मंगलम कार्यक्रम में सौ से अधिक गांवों और 108 देवालयों के कर रहे हैं दर्शन
डॉ बृजेश सती/ धार्मिक मामलों के जानकार
देहरादून। ढाई हजार साल पहले आदि गुरु शंकराचार्य ने वैदिक सनातन धर्म के प्रचार प्रसार के लिए देश भर में भ्रमण किया। उनकी द्विग विजय यात्रा के दौरा न देश के कुछ हिस्से बौद्धों के प्रभाव में थे और उनका विस्तार हो रहा था। सनातन वैदिक धर्म के व्यापक प्रचार प्रसार के लिए उन्होंने चार दिशाओं में चार मठों की स्थापना की । इन पीठों के कुशल प्रबंधन और संचालन के लिए अपने योग्य शिष्यों को आचार्य नियुक्त किया। तब से लेकर यह आचार्य परंपरा चारों मठों में निरंतर चलती आ रही है । हालांकि ज्योतिर्मठ इसका अपवाद है । जहां कुछ समय के लिए पीठ आचार्य विहीन रही। आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार मठों में उत्तर में ज्योतिर्मठ, पूर्व में गोवर्धन, पश्चिम में शारदा और दक्षिण में श्रृङ्गेरी मठ।
भगवतपाद आदि गुरु शंकराचार्य ने सैकड़ो वर्ष पूर्व जिस परंपरा की शुरुआत की , उत्तराम्नाय ज्योतिर्मठ के आचार्य उसी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। वो उत्तराखण्ड राज्य के सीमा से सटे गांवों के ग्रामीणों से चमोली मंगलम कार्यक्रम के माध्यम से सीधा संवाद कर रहे हैं। इस दौरान 21 दिनों में चमोली जिले के 108 सिद्ध पीठों और मंदिरों के दर्शन करेंगे। सीमांत जनपद के जोशीमठ, दशोली, नंद प्रयाग , थराली और कर्णप्रयाग विकास खंड के सौ से अधिक गांवों में भ्रमण करेंगे।
ज्योतिष पीठ के ढाई सौ वर्षो के इतिहास में यह पहला मौका है, जब पीठ के आचार्य द्वारा इस तरह से गांव गांव और नगर नगर प्रवास कर सीमांत इलाकों में रह रही जनता से संवाद किया जा रहा है।
ढाई हजार वर्ष पहले आदि गुरु शंकराचार्य ने भी देश के अलग-अलग कोनों में जाकर वैदिक सनातन धर्म के प्रचार प्रसार के लिए इसी तरह की पहल की थी। उस दौर में देश के कुछ हिस्सों में बौद्ध धर्म काफी प्रभावी था। खासकर भारत तिब्बत से जुड़ी हुई सीमा के आसपास के इलाकों में सक्रियता ज्यादा थी। बदरीनाथ मंदिर का पुनरुद्धार भी उसी समय हुआ था। तात्कालीन समय में आदि गुरु शंकराचार्य ने वैदिक सनातन धर्म के प्रचार प्रसार के लिए दिग्विजय यात्रा की थी।
अब उन्हीं की परंपरा के ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती की ओर से अभिनव पहल की गई है। उत्तराखंड राज्य के सीमांत और विकास की दृष्टि से पिछड़े जनपद चमोली में चमोली मंगलम नाम से यात्रा की जा रही है।
इस यात्रा के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती बताते हैं कि जनपद चमोली उत्तराखंड राज्य का सीमांत जनपद है। इसी जनपद में ज्योतिर्मठ भी स्थित है। वो बताते हैं कि यहां की सीमाएं तिब्बत की सीमा से जुड़ी हुई हैं ।
शंकराचार्य बताते हैं कि चमोली मंगलम यात्रा की शुरुआत देश की सीमा से लगी दो घाटियों माणा और नीति के सीमांत गांवो में से की गई।
21 दिनों तक चलने वाली इस यात्रा के बारे में कहते हैं कि इस दौरान दर्जनों गांव के लोगों से मिलकर उनसे संवाद करेंगे और सनातन धर्म के प्रचार प्रसार के साथ ही शंकराचार्य परंपरा से भी लोगों को अवगत कराएंगे।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा इस हिमालयी क्षेत्र के महत्व को २५०० वर्ष पूर्व ही अद्वैत वेदान्त के प्रवर्तक, सनातन धर्मोद्धारक और सनातन मत के संस्थापक ने समझ लिया था । आदि शंकराचार्य का हिमालयी क्षेत्र के नव जागरण में अविस्मरणीय योगदान है।
सदियों पूर्व आदि गुरु शंकराचार्य ने जिस परंपरा की शुरुआत की, उस परंपरागत को बदलते सामाजिक परिवेश के बीच उनकी परंपरा के वाहक आगे बढ़ा रहे हैं। निश्चित तौर पर विकास की दृष्टि से पिछडे जनपद में उनकी मंगल यात्रा विकास में मददगार होगी । यात्रा की खास बात यह कि दूरवर्ती ग्रामीण इलाकों के ग्रामीणों को शंकराचार्य परम्परा से रूबरू होने का अवसर भी मिल रहा है।