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यूपी भाजपा चीफ ने आलाकमान को सौंपी 40 हजार कार्यकर्ताओं के फीडबैक की रिपोर्ट, बताई हार की वजह

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी उत्तर प्रदेश की 400 सीटों पर जीत का दावा कर रही थी. लेकिन चुनाव के नतीजों ने बीजेपी की सभी उम्मीदों पर पानी फेर दिया. सबसे बड़ा झटका बीजेपी को यूपी के नतीजों से लगा जहां बीजेपी 80 में से 80 सीटों पर अपनी जीत का दावा ठोक रही थी. यहां बीजेपी को लगभग आधी सीटों पर हार का सामना करना पड़ा है. यूपी में चुनावों में अपने खराब प्रर्दशन के बाद बीजेपी आलाकमान ने स्पेशल टीम का गठन किया गया था. जिससे की यूपी में बीजेपी के खराब प्रर्दशन के कारणों का पता लगाया जा सके. अब ये रिपोर्ट बनकर तैयार हो गई है, जिसमें पार्टी के करीब 40 हजार कार्यकर्ताओं का फीडबैक लिया गया है।

उत्तर प्रदेश में बीजेपी के अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने आलाकमान को यूपी में खराब प्रर्दशन को लेकर रिपोर्ट पेश की जिसमें यूपी में संतोषजनक प्रदर्शन ना होने के पीछे की कई वजहें बताई गईं. भूपेंद्र चौधरी की स्पेशल टीम ने यूपी की 80 सीटों पर पार्टी के 40 हजार कार्यकर्ताओं से फीडबैक के आधार पर इंटरनल रिपोर्ट तैयार की थी. इस रिपोर्ट को लेकर भूपेंद्र चौधरी ने पीएम नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की।

बीजेपी के कितने वोट प्रतिशत में आई कमी?
इस रिपोर्ट के मुताबिक यूपी के 6 क्षेत्रों पश्चिमी यूपी, कानपुर-बुंदेलखंड, अवध, गोरखपुर ब्रज, और काशी क्षेत्र में बीजेपी के वोट शेयर में लगभग 8 प्रतिशत की कमी आई है. रिपोर्ट के मुताबिक पार्टी का सबसे खराब प्रर्दशन पश्चिम और काशी क्षेत्र में रहा. यहां बीजेपी को 28 सीटों में से केवल 8 सीटों पर जीत हासिल हुई. इसके अलावा यूपी के ब्रज में 13 में से 8 सीटों पर बीजेपी को जीत हासिल हुई. गोरखपुर में 13 में से 6 सीटों पर जीत मिलीं, इसके अलावा अवध में 16 में से सिर्फ 7 सीटों पर जीत मिलीं।

क्या रहीं हार की वजह?
आपको बता दें कि स्पेशल टीम की तरफ से जो पहली रिपोर्ट पेश की गई थी उसमें साफ बताया गया था कि चुनावी मैदान में प्रत्याशियों के अत्याधिक उत्साह ने उन्हें लापरवाह बना दिया. जिसकी वजह से बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा।
विपक्ष की ओर से उठाए गए मुद्दे जैसे आरक्षण समाप्ति और संविधान संशोधन के मुद्दों पर बीजेपी की जवाबदेही में कमी रही, जिसकी वजह से वोटर्स का मुड बदल गया।
बीजेपी के सांसदों और पदाधिकारियों के बीच तालमेल में कमी रही, इसका असर वोट बैंक पर दिखा।

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